Estimated reading time: 6 minutes
यदि हम दिल्ली सल्तनत के बारे में जानना चाहते है तो सबसे पहले दिल्ली सल्तनत के प्रशासन के बारे में जानना चाहिए| इक़्ता प्रणाली के बारे में भी छात्रों को काफी सवाल रहतें है तो आज इसके बारे में बात करेंगे|
Table of Contents
दिल्ली सल्तनत का प्रशासन
- दिल्ली सल्तनत में प्रशासन व्यवस्था इस्लाम (क़ुरान) पर आधारित थी| सल्तनत का राजधर्म इस्लाम था|
- सर्वप्रथम अलाउद्दीन ख़िलजी ने ख़लीफ़ा की सत्ता को चुनौती थी| और उसके नाम का ख़ुतबा पढ़ने और सिक्के ढालने की प्रथा को ख़तम कर दिया था|
केंद्रीय प्रशासन
- राज्य या सल्तनत का सर्वोच्च सेनापति तथा सर्वोच्च न्यायाधीश सुल्तान होता था| सुल्तान ही सभी विभागों का प्रमुख होता था|
- सल्तनत काल में मंत्रिपरिषद को मजलिस-ए-ख़लवत कहा जाता था| हालाकिं सुल्तान इनकी सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं होता था|
- राजधानी दिल्ली का प्रशासन कोतवाल करता था| कोतवाल ही सल्तनत के न्यायिक और पुलिस विभाग का अधिकारी होता था|
- मुहतसिब प्रजा के सामान्य आचरण पर नियंत्रण रखता था तथा नैतिक नियमों को शरीयत के अनुसार लागु करवाता था|
दिल्ली सल्तनत के प्रमुख विभाग एवं उनके कार्य
दीवान-ए-वज़ारत– वित्त विभाग
दीवान-ए-अर्ज़ – सैन्य विभाग
दीवान-ए – मुस्तख़राज़ – राजस्व विभाग
दीवान -ए – इंशा – पत्राचार विभाग
दीवान-ए -रसालत – विदेश विभाग
दीवान-ए -ख़ैरात – दान विभाग
दीवान-ए -अमीर -कोही– कृषि विभाग
दीवान-इ-बंदगान – दासों का विभाग
दीवान-ए -इश्तिहाक – पेंशन विभाग
दीवान-ए -वक़ूफ़ – व्यय विभाग
दीवान-ए -रियासत – बाजार नियंत्रण विभाग
दीवान -ए -ईमारत – लोक निर्माण विभाग
ये भी पढ़ें– Aryan invasion theory – Varna System in Vedic Civilization – प्राचीन भारत
दिल्ली सल्तनत के प्रमुख अधिकारी एवं उनके कार्य
वज़ीर– राजस्व विभाग का प्रधान
आरिज़ -ए – मुमालिक – सैन्य विभाग का प्रधान
दबीर-ए -ख़ास (अमीर मुंशी)– शाही पत्र-व्यवहार विभाग का प्रधान
सद्र -उस -सुदूर-धर्म विभाग का प्रधान
काजी-उल-कजात– न्याय विभाग का प्रधान
बरीद -ए -मुमालिक– गुप्तचर विभाग का प्रधान
आमिर-ए -आखूर – अश्वशाला का प्रधान
मुंसिफ-ए -मुमालिक – महालेखाकार
अमीर -ए -मुमालिक – महालेखाकार
अमीर -ए -मजलिस– शाही उत्सवों का प्रधान
खजीन – कोषाध्यक्ष
कोतवाल– शहर की शांति व्यवस्था का सर्वोच्च अधिकारी
इक्ता प्रणाली (Iqta System)
जिस प्रकार आज का भारत राज्य, जिला, तहसील, थाना, ग्राम आदि क्षेत्रीय इकाइयों में बटा है ठीक इसी प्रकार दिल्ली सल्तनत भी निम्न क्षेत्रीय इकाइयों में विभक्त थी – ग्राम- परगना – शिक – इक्ता – सल्तनत|
इक़्ता प्रणाली के अंतर्गत सुल्तानों ने अपनी सल्तनत की सैनिक तथा भूराजस्व व्यवस्था का संगठन किया था| इक़्ता वह क्षेत्रीय इकाई थी जिसमे सल्तनत को बांटा गया था| ये इक्ताऐं सामंतो तथा बड़े सैन्य अधिकारियो को वेतन के स्थान पर दे दी जाती थीं| किसी इक्ता से जो भी भू-राजस्व या कर आता था वह सामंत या सैनिक अधिकारी का वेतन होता था|
अधिकतर क्षेत्र सीधे सुल्तान के नियंत्रण में नहीं होते थे बल्कि ये इस सामंतों या इक्तेदारों के नियंत्रण में रहते थे| जब-जब सुल्तानों ने अपनी पकड़ इन इक्तेदारों पर ढीली की तब-तब इक़्तेदार विद्रोह कर देते थे| इक्तेदारों का किसानों के खेतों, उनकी धन सम्पदा आदि पर कोई अधिकार नहीं होता था| वह केवल राजस्व वसूल करने का अधिकार रखता था|
सैनिक और अन्य अधिकारीयों के खर्चे को पूरा करने के लिए अब्बासी खलीफाओं ने इस प्रणाली की शुरुआत की थी| इनसे प्रेरणा लेकर गजनी, ख़ुरासान, तथा तुर्क शासकों ने भी इस प्रणाली को अपना लिया|
दिल्ली सल्तनत का प्रांतीय प्रशासन
- दिल्ली सल्तनत इक़्ताओं (प्रान्त) में विभक्त थी| इक्ता का प्रधान वली, मुक्ति अथवा इक्तादार कहलाता था|
- इक्ताएँ जिलों में विभक्त थी जो शिक कहलाते थे| शिक का प्रधान शिकदार होता था| इक्ता को जिलों में विभाजित करने का काम बलबन के समय में किया गया था|
- शिक परगनों में बंटा होता था| परगने में आमिल और मुंसिफ दो महत्वपूर्ण अधिकारी हुआ करते थे|
- शासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम होती थी| गांव के मुख्य अधिकारी पटवारी, चौधरी, खुत, मुकद्दम थे जो शासन को लगान वसूल करने में सहायता करते थे| गांव के मुखिया को मुकद्दम कहा जाता था तथा जमींदारों को खूत कहा जाता था|
- खालसा (केंद्र शासित प्रदेश) के अधिकारी शहना कहलाते थे|
- इक्ता प्रणाली की शुरुआत इल्तुतमिश ने की थी| इस प्रणाली के अंतर्गत सैनिकों तथा राज्य के अधिकारियों को वेतन के बदले इक्ता या भूमि दी जाती थी।
- फ़िरोज़शाह तुगलक के समय में सबसे ज्यादा इक्ताएँ थी|
ये भी पढ़ें– हिन्दू धर्म में विवाह के प्रकार – Types of Marriage in Hinduism
सल्तनतकालीन राजस्व प्रशासन
- अलाउद्दीन ख़िलजी ने राजस्व बकाया की वसूली हेतु विजारत के अंतर्गत मुस्तखराज की स्थापना की थी|
- सिकंदर लोदी ने भूमि की पैमाइश के लिए गज-ए -सिकन्दरी की स्थापना की थी|
- सल्तनत काल में राज्य की आय का प्रमुख स्रोत कृषि थी तथा कर नगद व अनाज दोनों रूपों में लिया जाता था|
सल्तनत काल में मुख्य पांच प्रकार के कर लगाए जाते थे –
- उश्र– मुसलमानों से लिया जाने वाला भूमि कर
- ख़राज – गैर मुसलमानों पर धार्मिक कर
- खम्स – युद्ध में लूट तथा जमीन में गड़े खजानों से प्राप्त धन में सरकारी हिस्सा होता था| जिसमें सुल्तान का 1/4 तथा सेना का 3/4 हिस्सा होता है| अलाउद्दीन ख़िलजी ने सुल्तान का हिस्सा 3/4 कर दिया था| तथा सेना को स्थाई वेतन देना शुरू कर दिया था|
- जजिया– गैर मुसलमानों पर धार्मिक कर
- ज़कात – मुसलमानों पर धार्मिक कर
सल्तनत कालीन सैन्य प्रशासन
सल्तनत काल में दो तरह की सेनाये होती थी एक सुल्तान के प्रत्यक्ष नियंत्रण वाली सेना (हश्म – ए -वल्ब) और दूसरी प्रांतीय सेना (हश्म -ए -वतरफ)|
बरनी के अनुसार सल्तनत की सेना का वर्गीकरण निम्न प्रकार है-
- सर खेल – 10 घुड़सवारों का प्रधान
- सिपहसालार – 10 सर खेलों का प्रधान
- अमीर – 10 सिपहसालारों का प्रधान
- मलिक – 10 अमीरों का प्रधान
- खान – 10 मलिकों का प्रधान
- सुल्तान – सभी खानों का प्रधान या सर्वोच्च सेनापति
सल्तनत कालीन न्याय व्यवस्था
सल्तनत काल में मुस्लिम कानून के चार स्रोत थे –
- क़ुरान – यह मुस्लिम कानूनों का प्रमुख स्रोत है|
- हदीस – इसमें पैगम्बर के कथनों एवं कार्यों का उल्लेख है|
- इजमा – मुजतहिद द्वारा व्याख्या किया गया कानून
- कयास – तर्क या विश्लेषण के आधार पर व्याख्या किया गया कानून
ये भी पढ़ें– आधुनिक भारत का इतिहास One Liner – Modern History of India Important One Liner In Hindi
जिस प्रकार आज का भारत राज्य, जिला, तहसील, थाना, ग्राम आदि क्षेत्रीय इकाइयों में बटा है ठीक इसी प्रकार दिल्ली सल्तनत भी निम्न क्षेत्रीय इकाइयों में विभक्त थी – ग्राम- परगना – शिक – इक्ता – सल्तनत| सल्तनत को इक्ताओं में बांटा गया था|
दिल्ली सल्तनत इक़्ताओं (प्रान्त) में विभक्त थी| इक्ता का प्रधान वली, मुक्ति अथवा इक्तादार कहलाता था|
सल्तनतकाल में मंत्रिपरिषद को मजलिस–ए–खलवत कहा गया।
गांव के मुखिया को मुकद्दम कहा जाता था तथा जमींदारों को खूत कहा जाता था|
दिल्ली सल्तनत काल में राजस्व विभाग के प्रधान को वज़ीर कहा जाता था|
सुल्तान के बाद सबसे बड़ा सैन्य अधिकारी खान होता था|