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10th schedule – Anti Defection Law in India – UPSC Indian Polity
दल-बदल विरोधी कानून संविधान की 10 वीं अनुसूची में निहित है। यह 1985 में संसद द्वारा पारित किया गया था। Anti Defection Law UPSC समेत अन्य परीक्षाओ के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है|
लंबे समय तक, भारतीय राजनीति में विधायिका के सदस्यों द्वारा दल-बदल करके राजनीतिक व्यवस्था में अस्थिरता लाने का काम किया गया। विधायक अक्सर पार्टियों में बदलाव करते थे, सरकारों के गिरते ही विधानसभाओं में अराजकता फैलती थी|
91st Constitutional Amendment
कुख्यात “आया राम, गया राम” का नारा विधायकों द्वारा लगातार दल-बदल के सन्दर्भ में गढ़ा गया था। यह कहावत बहुत ज्यादा तब प्रचलित हुई जब 1967 में हरियाणा के एक विधायक ‘गयालाल’ ने एक दिन में तीन बार पार्टी बदली|
इस तरह की राजनीति को बंद करने के लिए 1985 में 52वां संविधान संशोधन किया गया और संविधान में 10वीं अनुसूची जोड़ी गई जिससे कि पार्टी छोड़कर भागने की प्रथा पर काबू पाया जा सके|
Purpose of The Anti Defection Law
इसका कानून का उद्देश्य राजनीतिक लाभ और पद के लालच में दल बदल करने वाले जन-प्रतिनिधियों को अयोग्य करार देना है, ताकि संसद की स्थिरता बनी रहे।
Disqualification
दल-बदल विरोधी कानून (Anti Defection Law) के तहत किसी जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित किया जा सकता है:
– यदि सदस्य स्वेच्छा से पार्टी की सदस्यता छोड़ देते हैं, तो उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।
– यदि कोई सदस्य अपनी पार्टी की दिशा के खिलाफ सदन में मतदान करता है और उसकी कार्रवाई को उसकी पार्टी द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता है, तो उसे अयोग्य ठहराया जा सकता है।
– यदि कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
– यदि कोई सदस्य स्वयं को वोटिंग से अलग रखता है।
– छह महीने की समाप्ति के बाद यदि कोई मनोनीत सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
Source of Indian Constitution – भारतीय संविधान के स्रोत |
Important Static GK Topics 2020 For SSC, Bank, UPSC |
Exceptions in Anti Defection Law
Anti Defection Law में कुछ अपवाद है जो विधायकों को अयोग्यता से बचाने के लिए कानून में प्रदान किये गये थे।
– 10 वीं अनुसूची कहती है कि यदि दो राजनीतिक दलों के बीच विलय होता है और एक पार्टी विधायिका के दो-तिहाई सदस्य विलय के लिए सहमत होते हैं, तो वे अयोग्य नहीं होंगे।
– यदि कोई व्यक्ति स्पीकर या अध्यक्ष के रूप में चुना जाता है तो वह अपनी पार्टी से इस्तीफा दे सकता है और जब वह पद छोड़ता है तो फिर से पार्टी में शामिल हो सकता है। इस तरह के मामले में उसे अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा।
2003 Amendment
2003 में कानून में संशोधन किया गया था। जब यह पहली बार लागू किया गया था, तो एक प्रावधान था जिसके तहत यदि मूल राजनीतिक दल में विभाजन हुआ और परिणामस्वरूप उस पार्टी के एक तिहाई विधायक एक अलग समूह बनाते हैं तो उन्हें अयोग्य घोषित नहीं किया जाएगा।
इस प्रावधान के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर दल-बदल जोड़-तोड़ हुआ जो दल-बदल पहले एकल होता था अब सामूहिक तौर पर होने लगा। इसलिए, कानूनविदों ने इस प्रावधान को हटाने का फैसला किया।
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91st Constitutional Amendment
– इस संशोधन के ज़रिये मंत्रिमंडल का आकार भी 15 फीसद तक सीमित कर दिया गया। हालाँकि, किसी भी कैबिनेट में सदस्यों की संख्या 12 से कम नहीं होगी।
– इस संशोधन के द्वारा 10वीं अनुसूची की धारा 3 को खत्म कर दिया गया, जिसमें प्रावधान था कि एक-तिहाई सदस्य एक साथ दल बदल कर सकते थे।
Argument against Anti Defection Law
– Anti Defection Law को कई बार अभिव्यक्ति की आज़ादी के हनन से भी जोड़कर देखा गया है, हालाँकि एक स्वस्थ लोकतंत्र के निर्माण में यह कानून काफी प्रभावी भी रहा है।
– जनता का, जनता के लिये और जनता द्वारा शासन ही लोकतंत्र है। दल-बदल विरोधी कानून जनता का नहीं बल्कि दलों के शासन की व्यवस्था अर्थात् ‘पार्टी राज’ को बढ़ावा देता है।
– दल-बदल विरोधी कानून की वज़ह से पार्टी लाइन से अलग लेकिन महत्त्वपूर्ण विचारों को नहीं सुना जाता है।
– इस कानून के कुछ प्रावधान विसंगतियुक्त हैं, उदाहरण के लिये यदि कोई अपनी ही पार्टी के फैसले की सार्वजनिक आलोचना करता है तो यह माना जाता है कि संबंधित सदस्य 10 वीं अनुसूची के तहत स्वेच्छा से दल छोड़ना चाहता है।
यह प्रावधान पार्टियों को किसी स्थिति की मनमाफिक व्याख्या की सुविधा प्रदान करता है। अभी हाल ही में विधायक अदिति सिंह के प्रकरण को आप इससे जोड़ सकतें है|
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